ABC News: बैंक में लॉकर रखने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बैंक ग्राहक को लिखित में जानकारी दिए बगैर लॉकर नहीं तोड़ सकते. बैंक लॉकर में रखी चीजों को नुकसान होने पर भी अपनी जिम्मेदारी से भी पल्ला नहीं झाड़ सकते.
सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया के पालन के बगैर अगर लॉकर तोड़ा जाता है तो इसे बैंक की तरफ से गंभीर लापरवाही माना जाएगा. जस्टिस मोहन एम शांतनागाउदर और विनीत शरण के बेंच ने यह फैसला दिया. इसमें कहा गया है कि बैंक के पास ग्राहकों के लिए एकतरफा या अनुचित शर्तें तय करने की भी आजादी नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक को लॉकर में रखी चीजों को नुकसान के मामले में बैंकों के जिम्मेदारी तय करने के लिए जरूरी नियम बनाने चाहिए. बेंच ने कहा कि हमें ऐसा लगता है कि इस बारे में मौजूदा नियम अपर्याप्त और अस्पष्ट हैं. बेंच ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि बैंक इस मुगालते में हैं कि लॉकर में रखी चीजों की जानकारी नहीं होने से उन्हें लॉकर में रखी चीजों को नुकसान से बचाने की छूट मिल जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 5,00,000 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी बैंक को दिया. बैंक की लापरवाही और ग्राहक को हुई मानसिक परेशानी को देखते हुए कोर्ट ने मुआवजे का आदेश दिया. कोर्ट ने बैंक को कानूनी खर्च के लिए 1,00,000 रुपये के अतिरिक्त मुआवजा देने का भी आदेश बैंक को दिया. बैंक ने ग्राहक को नोटिस दिए बगैर उसके लॉकर को तोड़ा था. ग्राहक अपने लॉकर की फीस नियमित रूप से दे रहा था. इस मामले में स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स कमीशन ने बैंक को गंभीर लापरवाली का दोषी माना था, लेकिन मुआवजे की रकम घटा दी थी. फिर ग्राहक ने नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन का दरवाजा खटखटाया था. लेकिन, उसे राहत नहीं मिली थी. फिर उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.